Wednesday, 15 February 2017

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कब हासिल होगी हमारी मजिल जो लिखी है संविधान के पहले पन्ने पर......


         भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है वह इसीलिए नहीं की भारत की भूमि बड़ी है, या यहाँ की आबादी ज्यादा है , बल्कि इसीलिए बड़ा है क्यूंकि इस संविधान में वो सारे प्रावधान है जो मानवजाती के उन्नति के लिए जरुरी है  यह प्रावधान लिखित रूप में है वह इसीलिए की आजादी तक भारत में जो कानून चले आ रहे थे वो तो किसी धर्म के मुताबिक या परंपरा के मुताबिक चले आ रहे थे जिनकी वजह से भारत में मुट्ठीभर लोग बहुजन समाज पर राज करते चले आ रहे थे आज भी वही चल रहा है |

                   एक और मुट्ठीभर लोग भरपेट खाते है और अपने कुत्तों को भी खिलाते है वह भी चांदी की थाली में दूसरी और भारतीय समाज का बड़ा हिस्सा आज भी अनाज के दाने दाने के लिए तरसता है | हमने ठान लिया है की भारत को डिजिटल कर देंगे, कैशलेस कर देंगे पर यह नहीं सोचा की जो पहले से ही कॅशलेस है उनका क्या करेंगे ? जो आज भी दो वक्त की रोटी नहीं खा सकते उनका क्या करेंगे ? बेरोजगारों का क्या करेंगे ? जाती धर्म के नाम पर दंगे, तेजी से बढ़ाते चोर उचक्के लफंगे इन सबका क्या करेंगे ? दुनिया को दिखाने के लिए हम सीना तान के मेरा भारत महँ है कहेंगे पर इस महान भारत के अंदर महामारी जो चल रही है इसे कैसे निपटेंगे ? यहाँ के राजकीय दलों के अच्छे हो या भ्रष्ट नेता, कार्यकर्त्ता भी लाखो के सूट, करोडो की गाड़िया लेकर घुमते है , लेकिन जो आज भी भारतीय संस्कृति के रखवाले बन गावो में झोपड़ियों में और शहरो में फुटपाथ पर रह रहे है उनका क्या करेंगे?


      आज परस्थितिया ऐसी है की हमें हमरी मंजिल तो पता है पर हासिल करने में किसी में ताक़त नहीं न ही इच्छा | जिनके पास सत्ता है पर उन्हें संविधान में निरधारित मंजिल पाने इच्छा नहीं है जिन्हें इच्छा है उनके पास सत्ताबल नहीं है | ऐसी विपरीत परिस्थिति में है हमारा प्यारा भारत देश |


यह है भारत के संविधान की असली मंजिल 


                 हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:

सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,

              तथा उन सब में, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

        क्या पाना है हमें ? सामाजिक आर्थिक और राजनितिक न्याय , अभिव्यक्त, विश्वास, धर्म की उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता.


६० सालों में क्या पाया है हमने ? 


               संविधान के उद्देशिका का पठन तो हम जोरो शोरो से करते चले आ रहे है पर क्या पाया है हमने आज तक ? सामाजिक  न्याय ? अगर हमने संविधान का यह उद्देश्य पा लिया होता तो आज भी दलित, पिछड़े समाज के लोगों पर जाती धर्म के नाम से बहिष्कार की नौबत नहीं आती | जाती धर्म के नाम पर यो कतल होते न दिखते |  आर्थिक न्याय ? किसे मिला आर्थिक न्याय  करोडो का चुना लगानेवाले विजय माल्या , ललित मोदी जैसों को या आज भी दरिद्रता का जीवन जी रहे, विषमताभरी व्यवस्था की मार झेल रहे बहुजन समाज को  ?
 राजनितिक न्याय ? राजनितिक न्याय तो बहोत दूर की बात है, क्यों की आज सत्ता में जो चेहरें दिख रहे है जो पिछड़े, दलित गिने जाते है यहाँ वह भी कटपुतलिया है यहाँ के प्रस्थापितों की | समाज को बुरी तरह अपनी जाल में फसाकर सत्ता में रहनेवालो के सामने ये चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते |

  अभिव्यक्त, विश्वास, को तो हर पल कुचला जाता है |  धर्म की उपासना की स्वतंत्रता, इसपर तो उसीका हक़ है जो सत्ता में है जो वो चाहें | प्रतिष्ठा और अवसर की समता. प्रतिष्ठा और अवसर(वह चाहें शिक्षा में हो या नोकरी, या राजनीती) इसपर  तो आज उनका ही हक़ है जिनके पास पैसा है | और बहुजन समाज के पास वो है नहीं |


कुल मिलाकर हमने क्या पाया है ? जो पाया वो सब कुछ उन्होंने ही पाया जो आज तक बहुजनो पर राज करते चले आ रहे थे | आज फिर भी हमने हार नहीं मानी निगाहे है  मंजिल पर है जो लिखी है संविधान के पहले पन्ने पर !




     

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